Dengue In Dun: डेंगू की दस्तक, पहला मरीज दून अस्पताल में भर्ती
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- शहर में डेंगू की दस्तक, 2 केस मिले, चिकित्सा विभाग भी हुआ सक्रिय
- जिला अस्पताल में आने लगे मच्छर जनित बीमारियों के मरीज
- घरों में नहीं पनपनें दे मच्छरों को…
देहरादून: राजधानी देहरादून में डेंगू दस्तक दे चुका है। दून हॉस्पिटल में डेंगू के दो मरीजों का इलाज चल रहा है। इन दोनों का कार्ड टेस्ट पॉजिटिव आया है जबकि अभी एलाइजा रिपोर्ट का इंतजार है।
उत्तराखंड में डेंगू के मामले आना शुरू हो गए हैं। देहरादून में डेंगू के 2 नए मामले दर्ज किए गए हैं, जिससे स्वास्थ्य विभाग अब अलर्ट मोड पर आ गया है। मॉनसून सीजन में डेंगू-चिकनगुनिया संक्रमण के फैलने का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता हैं। ऐसे में लोगों को अब इस सीजन में सावधान होने की ज्यादा ज़रूरत है। दून अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अंकुर पांडेय ने बताया कि बुधवार को अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में डेंगू के दो मरीज भर्ती हुए। एक मरीज 45 वर्षीय पुरुष हैं और दूसरे 49 वर्षीय महिला। एक मरीज उत्तराखंड के काशीपुर से हैं और दूसरा बिजनौर से। डॉ. पांडेय ने बताया कि दोनों मरीजों की हालत स्थिर है। वे बुखार के साथ भर्ती हुए थे और अन्य लक्षण भी सामान्य हैं, लेकिन डेंगू कार्ड टेस्ट पॉजिटिव आया है।
डेंगू से बचने के लिए घरों में मच्छरों को पनपने नहीं दें। घर के बाहर नालियों में काले तेल का छिडक़ाव करवाएं या फिर स्थानीय जनप्रतिनिधि से कहकर फोगिंग करवाएं ताकि डेंगू के फैलने से पहले रोकथाम हो सके। कूलर का पानी समय-समय पर निकालते रहे, गमलों और टायरों में पानी जमा न होने दें, रात को सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें, शरीर में पानी की कमी न होने दें, घर से बाहर निकलते समय पूरे बाजू वाले के कपड़े पहनें, बाहर का तला भुना खाने से बचें।
ऐसे कर सकते हैं डेंगू बुखार से खुद का बचाव
डॉ शिवांग पटवाल का कहना है कि “रात को बिस्तर पर मच्छरदानी लगाने से डेंगू से बचाव नहीं किया जा सकता है। क्योंकि डेंगू के मच्छर सबसे ज़्यादा दिन में सक्रिय होते हैं”। उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि “दिन में अच्छी तरह से सील बंद या वातानुकूलित कमरों में रहने से डेंगू से बचा जा सकता है। अगर बाहर जाना है, तो पूरी बाजू के कपड़े पहनें और एन, एन-डाइथायल-मेटाटोल्यूमाइड जैसी असरदार मच्छर प्रतिरोधक दवा का इस्तेमाल करें”।
मरीज में अचानक प्लाज्मा लीकेज होने से समस्या हो सकती है। इसलिए ज़्यादा खतरे वाले मरीजों की जांच शुरुआत से ही हो जानी चाहिए। सबसे ज्यादा शॉक का खतरा बीमारी के तीसरे से सांतवें दिन में होता है। यह बुखार के कम होने से जुड़ा हुआ होता है। प्लाज्मा लीकेज का पता बुखार खत्म होने के प्रथम 24 घंटे और बाद के 24 घंटे में चल जाता है। ऐसे में व्यक्ति में पेट में दर्द, लगातार उल्टियां, बुखार से अचानक हाईपोथर्मिया हो जाना या असामान्य मानसिक स्तर, जैसे कि मानसिक भटकाव वाले लक्षण देखे जाते हैं”।
डॉ. अंकित सिंह के अनुसार, इसमें हमेटोक्रिट में वृद्धि हो जाती है, जो इस बात का संकेत होता है कि प्लाज्मा लीकेज हो चुका है और शरीर में तरल की मात्रा को दोबारा सामान्य स्तर पर लाना बेहद आवश्यक हो गया है। उन्होंने कहा कि गंभीर थ्रोमबॉक्टोपेनिया (100,000 प्रति एमएम से कम) डेंगू हेमोर्हेगिक बुखार का मापदंड है और अक्सर प्लाज्मा लीकेज के बाद होता है।
जिन मरीजों में यह लक्षण न मिले, उनमें यह बीमारी आसानी से इलाज करके ठीक की जा सकती है। इसके लिए हर रोज रक्तचाप, हमेटोक्रिट और प्लेटलेट्स की संख्या का ओपीडी में चैकअप करवाना आवश्यक हो जाता है। लेकिन निम्नलिखित लक्षणों की मौजूदगी में मरीज को अस्पताल में भर्ती कराना ज़रूरी हो जाता है। जैसे ब्लड प्रेशर 90 और 60 प्रति एमएमएचजी से कम होना, हमेटोक्रिट 50 प्रतिशत से कम हो जाना, प्लेटलेट्स संख्या 50000 प्रति एमएम3 से कम हो जाना, पेटेचेयाई के अलावा ब्लीडिंग के प्रमाण मौजूद होना आदि।