पुरानी गढ़वाली रचनाओं का हो हिन्दी अनुवाद: नरेन्द्र सिंह नेगी

- डॉ. ईशान पुरोहित के कविता संग्रह और संस्मरण संग्रह का लोकार्पण
देहरादून: जाने-माने गढ़वाली कवि, गीतकार और गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने पुरानी गढ़वाली रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद करने की जरूरत पर बताई है। उन्होंने कहा कि गढ़वाल के जो लोग हिन्दी में लेखन कर रहे हैं, उन्हें पुराने गढ़वाली लेखकों की रचनाओं को हिन्दी में अनुवाद करना चाहिए, ताकि उन रचनाओं को पुनर्जीवित करने के साथ ही ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके। श्री नेगी वैज्ञानिक, कवि और लेखक ईशान पुरोहित की दो पुस्तकों के लोकार्पण के लिए आयोजित समारोह में बोल रहे थे।
डॉ. ईशान पुरोहित के तीन कविता संग्रह ‘जीवन तो चलता रहता है’, ‘मैं क्यों हारूं’ और ‘अभी बाकी हूं’ पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं। रविवार को लोअर नत्थनपुर स्थित देवफार्म में आयोजित एक समारोह में उनके कविता संग्रह ‘तुम्हारे बाद भी‘ और संस्मरण संग्रह ‘सफर, मुस्कराहट और जिन्दगी’ का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण समारोह का आयोजन सुशीला देवी फेलोशिप प्रोग्राम और विनसर पब्लिशिंग कंपनी की ओर से किया गया था।
मुख्य अतिथि के रूप में नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि डॉ. ईशान पुरोहित जैसे लेखकों को हिन्दी में अपनी लेखन यात्रा जारी रखने के साथ ही पुरानी गढ़वाली रचनाओं का हिन्दी अनुवाद भी करना चाहिए। पुस्तकों के लेखक डॉ. ईशान पुरोहित ने कहा कि लगातार व्यस्तता और यात्राओं के बीच ही उन्हें अपना लेखन करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि संस्मरण लिखना एक कठिन काम है, क्योंकि इसमें लेखक को पूरी तरह ईमानदारी बरतनी पड़ती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. डीआर पुरोहित ने कहा कि विश्वास नहीं होता कि इतने सारे अनुभव और भाव अकेले डॉ. ईशान पुरोहित के हैं।
जाने-माने कवि गिरीश सुन्दरियाल ने काव्य संग्रह की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि पुस्तक की पांडुलिपि बिना लेखक के नाम के उनके पास समीक्षा के लिए भेजी गई थी। उस समीक्षा को उसी रूप में इस पुस्तक में छापा गया है। उन्होंने कविताओं में हिन्दी और उर्दू शब्दों के प्रयोग को सराहनीय बताया। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कठिन शब्दावली और अलंकारों का सायास प्रयोग कविताओं को कई बार बोझिल बनाता है।
संस्मरण संग्रह की समीक्षा देवेश जोशी ने की। उन्होंने कहा कि ईशान की रचनाएं बताती हैं कि वैज्ञानिक के दिमाग में सिर्फ सूत्र और आंकड़े ही नहीं होते, बल्कि सरसता भी होती है। उन्होंने इस पुस्तक को साहित्य और विज्ञान का फ्यूजन बताया। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शास्त्री ने कहा कि ईशान के कुछ संस्मरण ऐसे हैं, जिन पर एक गढ़वाली उपन्यास की रचना की जा सकती है। कवयित्री और लेखिका बीना बेंजवाल ने कहा कि इन रचनाओं में अंतरंगता, आत्मीयता और तथ्यात्मकता मौजूद है। डॉ. राम विनय सिंह ने कहा कि कविता के बाद ईशान पुरोहित की गद्य यात्रा की शुरुआत भी शानदार है। शिक्षाविद्, लेखक और संस्कृतिकर्मी डॉ. नंद किशोर हटवाल ने कहा कि इन रचनाओं में प्रेम और प्रकृति के साथ ही छंद, बिम्ब और अलंकार भी हैं और आधुनिकता भी। कंदर्प पुरोहित ने पुस्तक की तीन कविताओं का वाचन किया। कार्यक्रम का संचालन गणेश खुगसाल ‘गणी‘ ने किया।
इस मौके पर कीर्ति नवानी, राकेश जुगरान, मनोहर चमोली मनु, गजेन्द्र नौटियाल, शिव प्रसाद पुरोहित, सुशाीला देवी पुरोहित, डॉ. उमा भट्ट, जयदीप सकलानी, सतीश धौलाखंडी, अरण्य रंजन, अखिलेश डिमरी, सुरजीत बिष्ट, नीरज बडोला, सरिता पुरोहित, आशा पुरोहित, कैलाश गोदियाल, योगेश धस्माना, डॉ. गुंजन पुरोहित, कुसुम भट्ट, त्रिलोचन भट्ट, राहुल कोटियाल, मंजु टम्टा, डॉ. पल्लव पुरोहित आदि मौजूद थे।




