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दुखद- राज्य आंदोलनकारी फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट का निधन

देहरादून:  उत्तराखंड राज्य आंदोलन के प्रख्यात सेनानी और उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापकों में से एक, दिवाकर भट्ट का निधन हो गया है। दिवाकर भट्ट 79 वर्ष के थे। पिछले 10 दिनों से इंद्रेश अस्पताल देहरादून में उनका उपचार चल रहा था, लेकिन डॉक्टरों ने आज उन्हें घर भेज दिया था। हरिद्वार स्थित आवास पर दिवाकर ने अंतिम सांस ली।

दिवाकर भट्ट को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सबसे मजबूत स्तंभों में माना जाता है। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत यूकेडी से हुई। भट्ट ने लंबे समय तक इसी दल के सदस्य रहकर राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया।

आईआईटी की पढ़ाई कर चुके दिवाकर भट्ट ने हरिद्वार बीएचईएल में नौकरी की। कर्मचारी नेता के रूप में आंदोलनों में भाग लिया। इसके बाद  1970 में ‘तरुण हिमालय ‘ नाम से संस्था बनाई इसके माध्य से  रामलीला जैसे सांस्कृतिक और एक स्कूल की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र मे भी काम किया। दिवाकर भट्ट ने 1971 में चले गढ़वाल विश्वविद्यालय आंदोलन में भी भागीदारी की। उनके तेवर उस जमाने में भी ऐसे थे कि बद्रीनाथ के कपाट खुलने के समय शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका से उन्हें उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया था।

1977 में दिवाकर उत्तराखंड युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे। 1978 में दिल्ली के बोट क्लब पर अलग राज्य की मांग के लिए रैली हुई तो दिवाकर भट्ट उन युवाओं में शामिल थे, जिन्होंने बद्रीनाथ से दिल्ली तक पैदल यात्रा की थी। इसमें आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई और तिहाड़ जेल में रहना पड़ा। इतना ही नहीं दिवाकर भट्ट 1978 में पंतनगर विश्वविद्यालय कांड के खिलाफ चले आंदोलन में बिपिन त्रिपाठी के साथ सक्रिय रहे।

1979 में ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ की स्थापना की गई जिसमें दिवाकर भट्च की बड़ी भूमिका रही। तब से दिवाकर राज्य निर्माण आंदोलन में लवगातार सक्रिय रहे।जब 1994 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन की ज्वाला भड़की तो दिवाकर इस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे। जब 1994 के बाद आंदोलन ढीला पड़ा तो उन्होंने नवंबर, 1995 में श्रीयंत्र टापू और दिसंबर, 1995 में खैट पर्वत पर अपना आमरण अनशन किया। श्रीयंत्र टापू में यशोधर बैंजवाल और राजेश रावत शहीद हुए।

खैट का अनशन

1994 की रामपुर तिराहा की घटना के बाद लोगों में आक्रोश था लेकिन पृथक राज्य की मांग का आंदोलन ठंडा पड़ता जा रहा था। ऐसे में दिवाकर भट्ट ने आंदोलन को गति देने के लिए ऐसी जगह चुनी जहां प्रशासन को पहुंचना भी टेढ़ी खीर थी। 19995-96 में दिवाकर भट्ट अपने साथी के साथ 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित खैट पर्वत पहुंच गए और यहां अनशन पर बैठ गए। परियों का देश माना जाने वाला यह क्षेत्र बेहद दुर्गम है। इसलिए प्रशासन यहां आसानी से अनशन तुड़वाने नहीं पहुंच सका। आखिर 32 दिनो के बाज जब दिवाकर भट्ट की मांगें मानी गई और राज्य निर्माण के लिए गतिविधियां तेज होने लगी तब जाकर दिवाकर भट्ट ने अपना अनशन तोड़ा।

राजनीति

दिवाकर भट्ट विभिन्न पदों पर भी रहे। 1982 से लेकर 1996 तक तीन बार कीर्तिनगर के ब्लॉक प्रमुख रहे। उन्होंने जितने भी विधानसभा चुनाव लडे उनमें उन्हें हमेशा भारी वोट मिला। दिवाकर भट्ट 1999 में उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में लड़े 2002 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के अब तक के सबसे ज्यादा 4 विधायक चुने गए थे।

राजस्व मंत्री बने

2007 में दिवाकर भट्ट देवप्रयाग से भारी मतों से जीतकर विधायक बने। तब बी सी खंडूड़ी सरकार को यूकेडी का समर्थन था. तो यूकेडी कोटे से दिवाकर भी मंत्री बने। राजस्व मंत्री रहने के दौरान दिवाकर ने भू कानून को सख्त बनाया औऱ भूमि खरीद की सीमा को 500 वर्ग मीटर से घटाकर 250 वर्ग मीचर करवाया। इसके अलावा पहाड़ में पटवारी व्यवस्था सुधारने में भी काम किया।

यूकेडी छोड़ी

मंत्री रहते भट्ट की बीजेपी से नजदीकियां बढी तो दिवाकर भट्ट ने 2012 का विधान सभा चुनाव कमल के निशान पर लड़ा और चुनाव हार गए। इसके बाद यूकेडी अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी से मतभेद हुआ तो पार्टी छोड़ दी और 2016 में भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन 2017 के चुनाव से ठीक पहले दिवाकर का भाजपा से मोहभंग हुआ और भाजपा छोड़ दी। तब निर्दलीय चुनाव लड़े और मामूली अंतर से हार गए।  इसके बाद दिवाकर फिर से अपनी पैतृक पार्टी यूकेडी में लौट आए।

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