
- उत्तराखंड इंसानियत मंच के वार्षिक सम्मेलन में बोले सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट
- बचा सको तो बचा लो उत्तराखंड को पुस्तिका विमोचन भी किया गया
देहरादून: भारत का संविधान सिर्फ देश का शासन चलाने का एक ब्यूप्रिंट नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकारों और मानव मूल्यों का एक दस्तावेज भी है। भारत के संविधान का एक-एक प्रावधान लंबी बहस और तर्क-वितर्क का नतीजा है। यदि कोई कहता है कि भारत का संविधान उधार लिया गया है तो यह एक झूठ है और संविधान के प्रति अनादर की अभिव्यक्ति है।
यह बात सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के पूर्व उपाध्यक्ष संजय पारिख ने कही। वे प्रेस क्लब में उत्तराखंड इंसानियत मंच के वार्षिक सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान इसीलिए दुनिया का महातम संविधान है कि उसकी नींव में मानव मूल्य और मानवाधिकार हैं। दुनिया में मानवाधिकारों से संबंधित संस्थाएं जिन भी अधिकारों की बात करती हैं, वे सभी भारत के संविधान में मौजूद हैं। दुनिया के महिलावादी संगठन महिलाओं के अधिकारों की जितनी बातें करती हैं, वे भी भारत के संविधान में पहले से मौजूद हैं।
पारिख ने कहा कि भारत के संविधान में नागरिकों को दिये गये मूल अधिकार हों, मूल कर्तव्य हों या फिर नीति निर्देशक तत्व, सभी में मानव मूल्य और मानवाधिकार निहित हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस अधिकार के तहत न सिर्फ सूचना का अधिकार मिला है, बल्कि चुनाव में उम्मीदवारों के बारे में पूरी जानकारी चुनाव आयोग को देने का प्रावधान भी इसी अधिकार के तहत किया गया है।संविधान की उद्देशिका के बारे में बोलते हुए उन्हांेंने कहा कि इसमें लिखे गये स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व शब्द हमारे संविधान को मानव मूल्यों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में समता और स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक मूल्यों का तो अक्सर जिक्र होता है, लेकिन बहुत कम फैसलों में बंधुत्व का जिक्र होता है। जबकि सच्चाई ये है कि बिना बंधुत्व के समता और स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि बंधुत्व नहीं होगा तो समता और समानता को स्थापित करने के लिए हमें पुलिस की जरूरत पड़ेगी। श्रोताओं के प्रश्नों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि यूसीसी एक राज्य के लिए नहीं, पूरे देश के लिए बनाना चाहिए। अग्निवीर के बारे में उन्होंने कहा कि यह एक अच्छी योजना नहीं है।
इससे पहले उत्तराखंड इंसानियत मंच के त्रिलोचन भट्ट ने तीन वर्षों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि राज्य में बढ़ती साम्प्रदायिक घटनाओं के बीच मानव मूल्यों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए इस मंच का तीन वर्ष पहले गठन किया गया था। एक छोटी सी शुरुआत लगातार आगे बढ़ रही है। तीन वर्षों के दौरान मंच द्वारा किये गये कार्यों का ब्योरा देते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि एक दिन जरूर आएगा जब उत्तराखंड की धरती से नफरत को विदा होना पड़ेगा। कमला पंत ने मंच की भावी योजनाओं के बारे में बताया और कहा कि नशा और नफरत को समाज से खत्म करने के लिए सभी के सहयोग से काम किया जाएगा। मंच का संचालन परमजीत सिंह कक्कड़ और चंद्रकला ने किया। समारोह में ‘बचा सको तो बचा लो उत्तराखंड को’ पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। सतीश धौलाखंडी और उनके साथियों ने जनगीत गाये। रामलाल भट्ट ने कठपुतली के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों और मानवता का संदेश दिया।