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उत्तराखंड आंदोलन में कई लोग थे, लेकिन कहीं भी देसी-पहाड़ी की बात नहीं हुई: निर्मला बिष्ट

देहरादून: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के मासिक कार्यक्रम ‘खबरपात’ का पांचवां संस्करण उत्तराखंड आंदोलन पर केन्द्रित था। इस कार्यक्रम में 6 आंदोलनकारियों ने उस दौर के अनुभव सुनाए। अपने अनुभव सुनाते हुए कई बार आंदोलनकारियों का दर्द छलका। उनका कहना था कि ऐसे राज्य के कल्पना नहीं की थी, जो हमें मिला। आंदोलनकारी ऊषा भट्ट ने रामपुर तिराहा कांड को आंखों देखा हाल सुनाया। उन्होंने कहा कि अपने साथ मौजूद अविवाहित छात्राओं के माथे पर बिंदी लगाकर उन्हें दरिंदे पुलिस वालों से बचाया था।

ऊषा भट्ट ने कहा कि एक अक्टूबर को वे लोग गोपेश्वर से चले थे। उनके साथ 26 लोग थे। उनमें 14 कर्मचारी, 9 गृहणियां और 3 छात्राएं थे। उन्हें ऋषिकेश तपोवन से ही रोका जाने लगा था। रामपुर तिराहा पर अंतिम बार रोका गया। उनकी बस सबसे पहले वहां पहुंची थी। उसके बाद कई और बसें रोकी गई। उनकी बसों पर पथराव किया गया। शीशे तोड़ डाले गये। महिलाओं को घसीटा जाने लगा। उनकी बस में मौजूद महिलाओं ने छात्राओं के माथे पर बिंदी लगाकर और उन्हें दरिन्दे पुलिस वालों से बचाया। उसके बाद जो कुछ हुआ, उसे कहा नहीं जा सकता।  ओमी उनियाल ने कहा वे घटना के बाद वहां पहुंचे थे। तब सुबह हो चुकी थी। कई लोगों का पता नहीं चल रहा था। सब बदहवास थे। उस समय आसपास के गांवों के लोग सहारा बने। मुस्लिम गांवों में मस्जिदों और मदरसों के दरवाजे खोल दिये थे।

सबसे ज्यादा दिनों तक जेल में रहने वाली उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट ने कहा कि उत्तराखंड आंदोलन में कई तरह के लोग थे, लेकिन कहीं भी हिन्दू-मुसलमान या देसी-पहाड़ी की बात नहीं थी। उन्होंने माना कि आज दो अभी दो उत्तराखंड राज्य दो का नारा बेहद बचकाना था। नये राज्य का कोई ब्लू प्रिंट नहीं था, जिसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं।आंदोलन में सांस्कृतिक मोर्चा के सदस्य रहे जनगीत गायक सतीश धौलाखंडी ने कहा कि किस तरह से जब आंदोलन शिथिल पड़ जाता, आंदोलनकारी थक जाते या ऊब जाते तो सांस्कृतिक मोर्चा गीतों और नाटकों के माध्यम से आंदोलनकारियों में जोश भरता। उन्हांेने आंदोलन के दौर के जनगीत भी गाये। कार्यक्रम के संचालक त्रिलोचन भट्ट ने 2 अक्टूबर 1994 को लाल किले पर हुई घटनाओं का ब्योरा दिया। कहा कि मुजफ्फर नगर की घटना से अनभिज्ञ उत्तराखंड के लोगों ने किस तरह दिल्ली पुलिस से लोहा लिया था। विशेष अतिथि के रूप में मौजूद डॉ. उमा भट्ट ने आंदोलन की सभी घटनाओं का दस्तावेजीकरण करने की जरूरत बताई।

इस मौके पर चंद्रशेखर तिवारी, कमला पंत, नन्द नन्दन पांडे, प्रो. राघवेन्द्र, हरिओम पाली, बीके डोभाल, चंद्रकला, विनय रावत, दिनेश शास्त्री, स्वाति नेगी, दीपा कौशलम, परमजीत सिंह कक्कड़, कविता कृष्णपल्लवी, लुशुन टोडरिया, पद्मा गुप्ता, विजय नैथानी, शांता नेगी, सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

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